महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह: एक महान व्यक्तित्व
महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह महारानी लाल कुँवरि महाविद्यालय के आदि संस्थापक थे। उनका जन्म 01 जनवरी 1914 को हुआ था और उनका निधन 30 जून 1964 को हुआ। महज 50 वर्ष की उम्र में उन्होंने इस जनपद के लिए उल्लेखनीय कार्य किया है।
महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह के व्यक्तित्व के निर्माण में भारत के स्वाधीनता संग्राम की महत्वपूर्ण भूमिका रही है वे राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन में महात्मा गांधी के विचारों से गहरे प्रभावित हैं। ये सुख एवं वैभव में पले होने के बाद भी इस तराई अंचल की जनता के सुख-दुःख एवं उनकी बुनियादी जरूरतों से भलीभाँति परिचित थे। वे स्वाधीनता आंदोलन के आदर्शवादी, नैतिकतावादी सृजनात्मक परिवेश में जन्में, पले-बढ़े और उच्चतर संस्कार अर्जित करते हुए युवा हुए थे। वे स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान बन रहे नये मूल्यों, विचारों एवं आदर्शों से गहरे जुड़े हुए थे। उन्होंने कम समय में ही इस तराई अंचल की अभावग्रस्त जनता के लिए शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण कार्य किया। वे एक संवेदनशील, सहृदय, सुयोग्य एवं दानवीर राजा थे। उन्होंने प्रसिद्ध काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विशाल परिसर के चहारदीवारी का भी निर्माण करवाया था। उनसे दान और सहयोग के लिए महामना पं0 मदनमोहन मालवीय ने भी सम्पर्क किया था। स्वतः बलरामपुर में महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह से उन्होंने मुलाकात की थी। उनके सुपुत्र महाराजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह ने एम0एल0 के0 पी0जी0 कालेज को पाटेश्वरी कीर्ति कहा है। आज यह महाविद्यालय तराई का आक्सफोर्ड कहा जाता है। इस पाटेश्वरी कीर्ति की उज्ज्वल कीर्ति को दषों दिषाओं में फैलते हुए देखा जा सकता है।
स्व0 महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह महाविद्यालय के प्रबन्ध समिति के संस्थापक अध्यक्ष 1955 से 1964 तक रहे हैं।
महाराजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह: एक महान व्यक्तित्व
बलरामपुर राज परिवार के स्मृतिषेष महाराजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह महारानी लाल कुँवरि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पूर्व संस्थापक अध्यक्ष अध्यक्ष भी थे वे एक सौम्य, मिलनसार, उदारमना और अन्य कई श्रेष्ठ मानवीय गुणों से सम्पन्न व्यक्ति थे। उनकी सरलता, सहजता और सादगी के मूल में उनका अध्ययनषील होना ही था। वे अपनी व्यस्त दिनचर्या में से कुछ समय अपने अध्ययन के लिए निकाल ही लेते थे। वे दर्षन, इतिहास और साहित्य की स्तरीय पुस्तकें पढ़ने के बेहद षौकीन थे। वे पारंपरिक षास्त्रीय, देषज और आधुनिक कलाओं में भी गहरी दिलचस्पी लेते थे। उन्होंने देष-विदेष की यात्राएं की थी। उनका व्यक्तित्व बेहद अनुभव सम्पन्न था। वे बहुभाषाविद् थे। वे अपनी बातचीत में स्पष्ट, ईमानदार और वस्तुपरक थे उन्होंने वर्ष 2011 में अपने महाविद्यालय को ‘ए’ ग्रेड मिलने पर अत्यन्त प्रसन्नता व्यक्त की थी। यह महाविद्यालय उनके निर्देषन एवं संरक्षण में लगातार प्रगति के सोपानों को पार करता रहा है।
स्व0 महाराजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह का षिक्षा से, विषेषकर उच्चषिक्षा से बहुत लगाव था। उनको पता था कि षिक्षा ही वह माध्यम है जिससे साधारण व गरीब जनता के जीवन में रोषनी और खुषहाली आ सकती है। यही कारण है कि वे बलरामपुर जनपद में स्कूल, कालेज खोलने और उनके सही दिषा में संचालित होने के लिए वे सतत् प्रयत्नषील और प्रतिबद्ध थे। महाविद्यालय परिवार उनके स्मृतिषेष होने के बाद भी उनके प्रेरक व्यक्तित्व से सदैव दिषा प्राप्त करता रहेगा।
स्व0 महाराजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह महाविद्यालय के प्रबन्ध समिति के संस्थापक अध्यक्ष 1964 से 2018 तक रहे हैं।
महाराजा जयेन्द्र प्रताप सिंह: एक समदर्षी व्यक्तित्व
बलरामपुर राज परिवार के वर्तमान महाराजा और महारानी लाल कुँवरि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के संस्थापक अध्यक्ष महाराजा जयेन्द्र प्रताप सिंह एक सुयोग्य, दूरदर्षी, अनुभवी और शिक्षा-प्रेमी व्यक्ति हैं। आप पारंपरिक और आधुनिक-दोनों तरह के शिक्षाओं से जुड़े रहे हैं। आप साहित्य एवं कलाप्रेमी होने के साथ-साथ कम्प्यूटर और तकनीकी ज्ञान से भी सम्पन्न हैं। आपका सुयोग्य नेतृत्व और संरक्षण महाविद्यालय को निरन्तर प्राप्त होता रहा है। आप महाविद्यालय के समस्त गतिविधियों के प्रति सम्बद्ध रहते हैं। आप अपने जनपद में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ जनसेवा के कार्यों से भी गहराई से जुड़े हुए हैं। आप जनपद में साधारण जन की चिकित्सा, शिक्षा व अन्य कई बुनियादी सेवाओं से भी गहराई और षिद्दत से जुड़े हुए हैं। आप से महाविद्यालय परिवार और जनपद की जनता को बहुत सारी अपेक्षाएं हैं। आप निस्पृह, निःसंग और स्वार्थरहित होकर समाज की निरंतर सेवा कर रहे हैं।
महाराजा जयेन्द्र प्रताप सिंह महाविद्यालय के प्रबन्ध समिति के संस्थापक अध्यक्ष 2018 से अद्यतन हैं।